Friday, October 6, 2017

प्रेम पथ

प्रेम की निर्जनता में उदासी हमेशा स्लेटी रंग की क्यों होती है
यही पूछा था न मैं ने
और तुमने हस कर कहा था
बिना संकट के कुछ भी सार्थक की प्रति संभव कहां
संभव तभी है
जब मन के पथ में दूसरे की गंध भरी हो
शारदीय धूप का केसरिया रंग किन्हीं अक्षांशो पर खिलाना ही होता है मयूख....
सच कहा था तुमने
प्रेम की परिणति तो पहुँच जाने में ही होती है
चाहे इतिहास बने या वर्त्तमान
बस इतना रहे की
मन की निर्जनता में भाद्रपद के चाँद सा झलकता रहे।

6 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, सूचना जनहित मे जारी ... “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 09 अक्टूबर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"

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  3. आप सभी का आभार।

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  4. प्रेम की निर्जनता में उदासी हमेशा स्लेटी रंग की क्यों होती है
    यही पूछा था न मैं ने
    ....भावनाओं को करीने से पिरोया है।

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