Thursday, April 2, 2015

अग्रदूत

कितना अच्छा हो
मन के रेगिस्तान को
कोई फूलों के गीत सुनाए

थके हुए इन पग को
कोई शीतल जल धो जाए

पतझर वसंत में अटकी दुनियां
की कोई गांठ खोल जाए


कितना अच्छा हो
कोई निराला मिल जाये
और वो फिर से वसंत अग्रदूत बन जाए

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